प्रयागराज, सनातन धर्म के 13 अखाड़ों में सबसे धनाढ्य कहे जाने वाले शैव संप्रदाय के श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई शंखनाद और डमरू की ध्वनि के बीच शिव तांडव के साथ सुसज्जित रथ, हाथी, घोड़े और ऊंट पर आरूढ़ संत महात्माओं ने बडी भव्यता के साथ कुंभ क्षेत्र में छावनी प्रवेश किया।
अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विशोकानंद महराज की अगुवाई में यह छावनी प्रवेश यात्रा शुरू हुई जिसमें आगे आगे अखाड़े के इष्ट भगवान कपिल जी का रथ चल रहा था, जिसके बाद आचार्य महामंडलेश्वर का भव्य रथ श्रद्धालुओं को दर्शन दे रहा था।
अलोपी बाग के निकट स्थित महा निर्वाणी अखाड़े की स्थानीय छावनी से अखाड़े का भव्य जुलूस उठा। सबसे पहले महा मंडलेश्वर पद का सृजन करने वाले इस अखाड़े में इस समय 67 महा मंडलेश्वर हैं। अखाड़े की छावनी प्रवेश यात्रा में भी इसकी झलक देखने को मिली। छावनी प्रवेश यात्रा में आगे आगे अखाड़े के इष्ट भगवान कपिल जी का रथ चल रहा था।
गेरूआ वस्त्र धारण कर बटुक डमरू की गडगडाहट और एक संत शंखनाद करते चल रहे थे छावनी प्रवेश के बीच शिव बराती के रूप में नर-पिशाच बने कलाकार तांडव करते शिवर की तरफ बढ़ रहे थे। नर पिशाचों ने बक्शी पुलिस चौकी के सामने तांडव किया और मुंह से आग उगलने के करतब से श्रद्धालु आश्चर्यचकित रहे। कलाकारों ने चिता की भस्म की होली खेली।
पेशवाई में नागा सन्यासी, महंत, श्री मंहत, मंडलेश्वर और महामंडलेश्वर रथ पर सवार थे। एक हजार से ज्यादा साधु-संत हाथी-घोड़े और रथ शामिल थे। हजारों लोग रास्ते में साधु-संतों पर फूल बरसाकर स्वागत कर रहे थे। साधु संत युद्ध क सामान भाला, बरछा, तलवार, गदा, लाठी आदि लेकर चल रहे थे। नागा संन्यासियों का युद्ध कौशल लोगों को सबसे आकर्षक लगा। नागा सन्यासी करतब दिखाते हुए चल रहे थे। बच्चे तो ऐसा करतब देखकर डर गए।
श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, हिंदू परंपरा के तीन प्रमुख शस्त्रधारी अखाड़ों में से एक है। यह एक शैव शस्त्रधारी अखाड़ा है।
पेशवाई में आग चलते हुए अखाड़े के श्रीमहंत सचिव यमुना पुरी ने बताया कि मेला क्षेत्र में शिविर के पहुंचने के बाद अखाडे के संत महात्मा मेला शिविर में रहेंगे। श्री पंचायती महानिर्वाणी अखाड़े की पेशवाई हमेशा से इसी प्रकार दिव्यता और भव्यता के साथ निकलती है।
उन्होंने बताया कि पेशवाई एक शोभायात्रा होती है जिसमें साधु-संत हाथी, घोड़े, और रथों पर बड़े-बड़े सिंहासनों पर बैठकर राजसी शान-ओ-शौकत के साथ कुंभ मेले में प्रवेश करते हैं। यह एक ऐतिहासिक परंपरा है और कुंभ मेले का और भारत की सांस्कृतिक विरासत का एक अहम हिस्सा है। पेशवाई के ज़रिए सभी साधु-संतों का दर्शन नगर के लोग करते हैं। ऐसा माना जाता है कि आज भी अखाड़ा के साधू-संत न सिर्फ बुद्धि कौशल से निपुण होते हैं बल्कि वो शास्त्रार्थ में भी अन्य लोगों से आगे होते हैं। अखाड़ा को साधुओं को सनातन धर्म का पूर्ण ज्ञान होने के साथ वो इस धर्म को बढ़ावा देने का भी प्रयास करते रहते हैं।
अखाडा के श्रीमहंत ने बताया कि पेशवाई शब्द फ़ारसी शब्द ‘पेशवा’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है ‘सबसे आगे, नेता’। पेशवाई में अखाड़े अपने सभी हथियार और निशान के साथ निकलते हैं। पेशवाई, हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, और उज्जैन में कुंभ मेले में निकाली जाती है। महाकुंभ में साधु-संतों की पेशवाई के बाद ही शाही स्नान का शुभारंभ होता है।
नारी शक्ति को महा निर्वाणी अखाड़ा ने हमेशा विशिष्ट स्थान दिया है। अखाड़ों में मातृ शक्ति को स्थान भी सबसे पहले महा निर्वाणी अखाड़ा ने दिया। अखाड़ा के सचिव महंत जमुना पुरी बताते है कि साध्वी गीता भारती को अखाड़ों की पहली महा मंडलेश्वर होने का स्थान प्राप्त है जो उन्हें 1962 में प्रदान किया गया था। निर्वाणी अखाड़े के महामंडलेश्वर स्वामी हरि हरानंद जी की शिष्या संतोष पुरी तीन साल की उम्र में अखाड़े में शामिल हुई और उन्हें ही यह उपलब्धि हासिल है। दस साल की उम्र में वह गीता का प्रवचन करती थी जिसके कारण राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें गीता भारती का नाम दिया और संतोष पुरी अब संतोष पुरी से गीता भारती बन गई। छावनी प्रवेश यात्रा में भी इसकी झलक देखने को मिली जिसमें चार महिला मंडलेश्वर भी शामिल हुई। यात्रा में वीरांगना वाहिनी सोजत की झांकी में भी इसकी झलक देखने को मिली। छावनी यात्रा में पर्यावरण संरक्षण के कई प्रतीक भी साथ चल रहे थे। पांच किमी लंबा सफर तय करके शाम को अखाड़े ने छावनी में प्रवेश किया।