हमीरपुर में बलदाऊ मंदिर में शुक्रवार से श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव की धूम मचेगी। नगर के तमाम इलाकों की महिलाएं मंदिर में आकर कान्हा के जन्मोत्सव पर सोहर गाएगी फिर इसके बाद वह अपने घरों में जन्माष्टमी मनाएगी। अबकी बार छप्पन प्रकार का दिव्य भोग श्रीकृष्ण के लिए तैयार कराया जा रहा है।
हमीरपुर शहर के विद्यामंदिर रोड पर बलदाऊ मंदिर स्थित है। इसकी ऊंचाई करीब चालीस फीट है। इस मंदिर में बलदाऊ और उनकी पत्नी की भव्य मूर्तियां विराजमान है। ये दोनों मूर्तियां अष्टधातु की है जो करीब ढाई फीट है। बीच में श्रीकृष्ण की अद्भुत मूर्ति भी बांसुरी बजाने की मुद्रा में विराजमान है। मंदिर के अंदर शिव लिंग और इसके ठीक सामने हनुमान जी की प्रतिमा विराजमान है। मंदिर की नक्काशी भी बेजोड़ है। जन्माष्टमी को लेकर मंदिर की रंगाई और पुताई कराने के साथ ही इसे दुल्हन की तरह सजाया गया है। पुजारी महाराज ने दावा किया है कि मंदिर में आकर बलदाऊ व श्रीकृष्ण के दर्शन करने मात्र से ही दिन अच्छा बीतता है। हर संकट से लोग सुरक्षित भी रहते है।
सैकड़ों साल पहले मन्नत को लेकर एक परिवार ने बनवाया था मंदिर
मंदिर के पुजारी जगत प्रसाद महाराज ने बताया कि हमीरपुर नगर के खजांची मुहाल निवासी प्रेम अग्रवाल के वंशज सैकड़ों साल पहले इटावा से आकर यहां बसे थे। इनके पूर्वजों के यहां संतानें नहीं होती थी। इसलिये इन्होंने हर जगह माथा टेका लेकिन कोई सफलता नहीं मिली थी। एक दिन स्वप्न में इन्हें बलदाऊ का मंदिर बनवाकर श्रीकृष्ण व अन्य देवताओं की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा कराने को कहा गया। पुजारी बाबा ने बताया कि गोपाल दास, लाला भवानी प्रसाद इटावा ने यहां वर्ष 1880 में श्री बलदाऊ मंदिर का निर्माण कराया था। मंदिर बनने के बाद इनका वंश आगे बढ़ा। ये मंदिर काफी बड़े क्षेत्र में बना है।
हजारों लोग मंदिर में मंगला आरती के बाद घरों में मनाते हैं जन्माष्टमी
बलदाऊ मंदिर के पुजारी ने बताया कि हर साल मंदिर में जन्माष्टमी की रात रमेड़ी, सुभाष बाजार, किंग रोड, मिश्राना, नौबस्ता तथा आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती थी। यहां जहानाबाद से सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिये एक पार्टी भी आती थी जो लगातार छह दिनों तक मंदिर में धार्मिक आयोजन करती थी। महिलाएं भी श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर सोहर गाती है। शहर के रमेड़ी मुहाल की राधा शुक्ला, बबलू अवस्थी सहित अन्य लोगों ने बताया कि जन्माष्टमी की रात बड़ी संख्या में लोग मंदिर में पहुंचते है।इसके बाद लोग अपने घरों में जाकर जन्माष्टमी मनाई जाती है।