मणिपुर में तीन मई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित होने के बाद शुरू हुईं जातीय झड़पों में 180 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों अन्य घायल हुए हैं। राज्य की आबादी में मेइती लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं।
पूर्वी कमान के ‘जनरल ऑफिसर कमांडिंग-इन-चीफ’ ने यह भी कहा कि भारत मिजोरम और मणिपुर में आम ग्रामीणों, सेना या पुलिस सहित म्यांमा से शरण लेने वाले किसी भी व्यक्ति को शरण दे रहा है, लेकिन मादक पदार्थों के तस्करों के उग्रवादी समूहों के सशस्त्र कैडरों को नहीं।
कलिता ने गुवाहाटी प्रेस क्लब में संवाददाताओं से बातचीत में कहा, ‘‘हमारा प्रयास हिंसा को रोकना और संघर्ष के दोनों पक्षों को राजनीतिक समस्या के शांतिपूर्ण समाधान के लिए प्रेरित करना है। क्योंकि अंततः समस्या का राजनीतिक समाधान ही होना है।’’
उन्होंने कहा कि जहां तक जमीनी स्थिति का सवाल है, भारतीय सेना का उद्देश्य शुरू में अपने घरों से विस्थापित हुए लोगों के लिए बचाव और राहत अभियान चलाना था। कलिता ने कहा, ‘इसके बाद, हम हिंसा को रोकने की कोशिश कर रहे हैं, जिसमें हम काफी हद तक सफल रहे हैं। लेकिन दो समुदायों-मेइती और कुकी के बीच ध्रुवीकरण के कारण यहां-वहां छिटपुट घटनाएं होती रहती हैं।’
कलिता ने कहा कि भारत-म्यांमा सीमा के माध्यम से मादक पदार्थों के साथ-साथ हथियारों की तस्करी थम गई है, हालांकि कुछ छिटपुट घटनाएं हो सकती हैं। उन्होंने जोर देकर कहा, ‘लेकिन चूंकि 4,000 हथियार पहले से ही खुले में हैं, मुझे लगता है कि बाहर से हथियार लाने की कोई आवश्यकता नहीं है।’